प्रौढ़ावस्था (व्रद्धावस्था) 40 साल की आयु के बाद शुरू होती है।इस अवस्था में आंखो का खास ख्याल रखना बहुत आवश्यक है। प्रायः इस आयु में चश्मा लगाने की आवश्यकता पड़ जाती है।क्योकि हमारी आंखो का फोकस इस आयु में बदलने लगता है। किसी को पास का, तो किसी को दूर का दृश्य साफ दिखाई नहीं देता। किसी किसी को पास व दूर दोनों दृश्य साफ दिखाई नहीं देते।ऐसी स्थिति में आंखो की जांच करवा कर उचित नंबर का चश्मा जल्द से जल्द लगा लेना चाहिए। चश्में के नंबर की जांच किसी योग्य व अनुभवी चिकित्स्क से ही करनी चाहिए। हर किसी से जांच कराना या मनमर्जी से कोई चश्मा प्रयोग करना हानिप्रद सिद्ध होता है।
इस आयु में कुछ नेत्र की समस्याएं भी हो जाया करती है जिनकी चिकित्सा कराना आवश्यक हो जाता है।इन व्याधियों में ग्लूकोमा और केटरेक्ट प्रमुख है। आयुर्वेद ने नेत्र रोगो का विस्तार से वर्णन किया है।आयुर्वेद ने 76 प्रकार के नेत्र रोगों की चर्चा करके उनके निदान व चिकित्सा का विस्तृत विवरण दिया है।सुश्रुत संहिता के उत्तरतन्त्रम अध्याय प्रथम में ऋषियों ने नेत्र की रचना का जैसा सूक्षम और विस्तृत विवरण दिया है वह उनका अगाध ज्ञान का सूचक है। इस विवरण को पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि आयुर्वेद के मनीषियों को भी मानव शरीर की एक एक नस का पूरा पूरा सही ज्ञान था। सुश्रुत -उत्तर तन्त्र 1-28 || इस प्रकार है -
वातादद्श तथा पित्तात कफाश्चैव त्रयोदशः |
रक्तात षोडश विज्ञेयाः सर्वजाः पंच विंशतिः |
तथा बह्वाौ पुनद्दौ च रोगाः षट सप्ततिः स्मृताः |
अर्थात दोषो के अनुसार वात दोष से दस, पित्त दोष से दस, कफ दोष से तेरह, रक्त से सोलह, सर्वज पच्चीस और ब्रह्वा कारण से दो ऐसे कुल मिलाकर छहत्तर प्रकार के नेत्र रोग होते है।सुश्रुत ने बहुत विस्तार से इन 76 रोगो की उतपत्ति के कारण बताते हुए निदान व चिकित्सा का विवरण प्रस्तुत किया है।आजकल प्रायः नेत्रों की कई समस्याएं आमतौर पर पाई जाती है।जो की इस प्रकार है -
- नेत्रशोथ (Conjuctivitis)
- ग्लूकोमा (Glaucoma)
- मोतिया बिन्द (Cataract)
- रतौंधी (Night Blindness
नेत्रशोथ कई प्रकार का होता है।यह रोग प्रायः विटामिन 'ए' और 'डी' की कमी से हो जाता है। यह रोग अकस्मात उतपन्न होता है कई बार इसके होने का कारण अज्ञात रहता है। इस रोग में कष्ट और असुविधा तो होती है पर इस रोग से नेत्रों को कोई हानि नहीं होती। यह संक्रामक रोग है और बड़ी तेजी से फैलता है।इससे बचाव के लिए जरूरी है कि बराबर आंखो की देखभाल करते रहे और आंखो का चेकप भी जरूर कराये।
ग्लूकोमा (Glaucoma)
आयुर्वेद ने इस रोग के जो कारण बताये है उनमे बड़ी हुई उम्र के कारण मोटा होना। 40 से 45 वर्ष की आयु में दृष्टि मणि (Lens) की कठोरता, तनाव, क्रोध, चिन्ता, मानसिक आघात, अनिद्रा, उच्च रक्त चाप आदि प्रमुख कारण है। इस रोग में नेत्रगोलक (Eye Ball) कठोर होने लगता है और भीतर का भार (Tension) बढ़ने लगता है जिससे ग्लूकोमा होता है और अगर इसका शीघ्र ही इलाज न किया जाये तो नेत्र दृष्टि नष्ट हो जाती है।
मोतिया बिन्द (Cataract)
मोतिया बिन्द आयु बढ़ने पर प्रायः हुआ करता है। यह 40 साल की आयु के बाद होता है। उपद्रवभूत मोतिया बिन्द मधुमेह, वृक्क शोथ, वातरक्त, स्व्र्ण शुक्र, ग्लूकोमा आदि रोगों के कारण होता है।इसलिए मनुष्यों को सदैव नेत्रों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।सन्क्षेप में नेत्र रोगों की सामान्य चिकित्सा यह है कि जिन कारणों से नेत्र रोग उतपन्न होते है उनका पूर्ण त्याग कर देना चाहिए।
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