Hello दोस्तों आज में अपने इस आर्टिकल में बच्चो को दें अच्छे संस्कार के बारे में चर्चा करुंगी जो हमें अपने माता पिता से मिलते है।
बच्चे कच्ची मिट्टी के सामान होते है जिस तरह कच्ची मिट्टी को कुम्हार बर्तन बनाने के लिए जिस आकार में ढालता है और उस आकार का बर्तन बनने के बाद जब सूख कर तैयार हो जाता है।
तब उसे तोड़ कर भी हम दुबारा कोई और आकार में नहीं ढाल सकते उसी तरह हम बच्चो को भी बचपन से ही जो सिखाते हे और जो संस्कार देते है वो बड़े होने के बाद नहीं बदल सकते।
संस्कार क्या हैं?
संस्कार के विषय में चर्चा शुरू करने से पहले इसकी परिभाषा प्रस्तुत कर देना जरुरी है ताकि विषय को हम पर्याप्त गहराई तक समझ सके और लाभ उठा सकें।किसी पदार्थ का संस्कार करने का मतलब है इसके मौलिक गुण, रूप और उपयोगिता में परिवर्तन और नवीनता उत्पन्न करना। किसी द्रव्य में गुणों का अन्तर करना या स्थापना करना 'संस्कार करना' है।
उदाहरण
उदाहरण के लिए किसी पदार्थ को संस्कारित करने के लिए आधार, समर्क, संयोग, मिश्रण आदि जरुरी होता है। इन विधियो से किसी पदार्थ को संस्कारित करने से इसके मूल गुणों में परिवर्तन हो जाता है, वृद्धि हो जाती है नये गुण पैदा हो जाते है।जैसे गेहूँ के आटे में जो गुण होते है वे गुण आटे को संस्कारित करने पर ज्यों के त्यों नहीं रह पाते। वे घट जाते है, बढ़ जाते है, बदल जाते है और नये गुण पैदा भी हो जाते है।
आधार, सम्पर्क, संयोग और मिश्रण आदि करके गेहूँ के आटे से रोटी, पराठे, पूरी, हलुआ, दलिया तथा विविध प्रकार के अन्य व्यंजन बनाए जाते है और सभी व्यंजनो के गुण और प्रभाव अलग अलग होते है।
आग, तेल,मसालें एवं अन्य पदार्थो से आटे को संस्कारित करने से ऐसा होता है। ये पदार्थ किसी के लिए अनुकूल साबित होते है तो किसी के लिए प्रतिकूल।पदार्थ को बनाना, सेंकना, भूनना, तलना ही 'संस्कार करना है।'
पदार्थ के मिश्रण, संयोग व प्रयोग आदि के संस्कारो का इतना विवरण पढ़कर आप संस्कारो के महत्व और उपयोग को समझ चुके होंगे।
पदार्थ के मिश्रण, संयोग व प्रयोग आदि के संस्कारो का इतना विवरण पढ़कर आप संस्कारो के महत्व और उपयोग को समझ चुके होंगे।
अब हम इस विषय पर जीवात्मा के संस्कारो की चर्चा करते है। जैसे प्रत्येक पदार्थ अपने मौलिक गुण पृथक रूप से रखता है और विभिन्न प्रकार के संस्कार किए जाने पर विभिन्न प्रकार के अच्छे या बुरे गुण धारण कर लेता है।
उसी प्रकार जीव भी अपने मौलिक गुणों के बावजूद नाना प्रकार के संस्कारो से संस्कृत होकर नाना प्रकार के गुणों और परिणामों को उपलब्ध होता है।
संस्कार क्यों देने चाहिए?
जैसे हमारे संस्कार होते है (जो की हमारे शुभाशुभ कर्मो से बनते है) वैसे ही अच्छे बुरे गुण और मनोवृति हम उपलब्ध करते रहते है।हमारा आज जैसा भी जीवन है और कल जैसा भी जीवन होगा वह हमारे ही कर्मो से बनने वाले संस्कारो का परिणाम होगा इस सिद्धांत का बहुत सूष्म और गहरा प्रभाव हम पर पड़ता है
जैसे अच्छी और भारी मात्रा में फसल प्राप्त हो इसके लिए चार अच्छी चीजों का होना जरुरी होता है (1) अनुकूल ऋतु (2) अच्छी जमीन यानि खेत (3) अच्छा जल और (4) अच्छा बीज इनमे से कोई एक भी चीज के न होने पर कोई फसल पैदा नहीं हो सकती, कोई नया अंकुर पैदा नहीं हो सकता।
जैसे अच्छी और भारी मात्रा में फसल प्राप्त हो इसके लिए चार अच्छी चीजों का होना जरुरी होता है (1) अनुकूल ऋतु (2) अच्छी जमीन यानि खेत (3) अच्छा जल और (4) अच्छा बीज इनमे से कोई एक भी चीज के न होने पर कोई फसल पैदा नहीं हो सकती, कोई नया अंकुर पैदा नहीं हो सकता।
इसी के साथ अच्छी और गुणवत्ता युक्त फसल के लिये चारो चीजों का अच्छी श्रेणी का और पर्याप्त मात्रा में होना भी जरुरी है वरना न तो फसल पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होगी और न अच्छी क़्वालिटी की होगी।
बिल्कुल इसी प्रकार आयुर्वेद ने अच्छी संतान प्राप्त करनेके लिये भी इन्ही चारो चीजों का अच्छी और आवश्यक मात्रा में तथा गुणवत्ता युक्त क़्वालिटी का होना जरुरी माना है।
जैसे अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए अच्छा बीज बोना जरुरी है उसी तरह पुरुष के शुक्र का शुद्ध, निर्दोष और पुष्ट होना जरुरी है।
जैसे अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए अच्छा बीज बोना जरुरी है उसी तरह पुरुष के शुक्र का शुद्ध, निर्दोष और पुष्ट होना जरुरी है।
जैसे खेत की जमींन का उपजाऊ होना जरुरी है उसी प्रकार स्त्री का गर्भाशय शुद्ध, विकार व दोष रहित और बलवान होना बहुत जरुरी है।
जैसे अच्छी फसल उत्त्पन्न होने के साथ यह भी जरुरी है कि उसकी देखभाल और सुरक्षा भी की जाए। इसी प्रकार संतान को गर्भ में पोषण करने के समय वैचारिक रूप से भी अच्छे विचार और अच्छे अचार द्वारा गर्भस्थ जीव को अच्छे संस्कार प्रदान करना होगा।
जैसे उचित तरीको से अच्छी खेती करने वाला अच्छी फसल कर पाता है उसी प्रकार अच्छे विचार और संस्कारो के द्वारा जो संतान उत्पन्न की जाती है वही संतान उत्पन्न करने वाले माता-पिता को सुख और यश देती है।
माता-पिता गर्भस्थ जीव (शिशु) का कैसे रखें ख्याल?
अतः सभी माता-पिताओं को पूरा ध्यान रखकर यथोचित प्रयतन करना चाहिए। उन्हें गर्भाधान के पूर्व से ही मानसिक तैयारी करके अपने आचार-विचार अच्छे रखकर ही गर्भाधान करना चाहिए।पूरे गर्भकाल में भी खास तौर से माता को, अपने आचार-विचार शुद्ध, उत्तम और विधिवत ढंग से रखना चाहिए ताकि गर्भस्थ जीव पर अच्छे संस्कार पड़े।
जन्म के बाद शिशु जब तक पूरा बोध प्राप्त न कर ले तब तक भी माता-पिता को सावधान रहकर उसे अच्छे संस्कार देते रहना चाहिए। क्योकि बाल्यकाल के संस्कार पुरे भावी जीवन को प्रभावित करने वाले सिद्ध होते है।
आज के वातावरण का प्रभाव हम छोटे बच्चों पर स्पष्ट रूप से देख सकते है। बच्चों के हावभाव, स्वभाव आचरण बोलचाल और आदतों पर वर्तमान वातावरण की छाप साफ-साफ दिखाई देती है।
आज के वातावरण का प्रभाव हम छोटे बच्चों पर स्पष्ट रूप से देख सकते है। बच्चों के हावभाव, स्वभाव आचरण बोलचाल और आदतों पर वर्तमान वातावरण की छाप साफ-साफ दिखाई देती है।
आप इसे देखकर ही यह अंदाजा लगा सकते है कि इस बच्चे के माँ-बाप कैसे होंगे ! फूल या फल को देखकर ही आप समझ जाते है है कि यह किस पेड़ का फूल या फल है।
आज जैसी संताने हो रही है उसके मूल कारण में माता-पिता के आचार विचार और आहार का दायित्व ही विधमान है।
जैसे खेती के लिए एक कहावत है --- खेती आप सेती यानि खेती तभी अच्छी और भरपूर मात्रा में होती है जब किसान खुद ही उसकी देखभाल और सम्हाल करता है।
इसी तरह संतान को पैदा करने और ठीक से पालन-पोषण कर उन्हें अच्छे संस्कार देने का कार्य भी माता-पिता को ही करना होगा। दुसरो के भरोसें रहना ठीक नहीं।
आपने इस आर्टिकल को पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद करते है | कृपया अपनी राये नीचे कमेंट सेक्शन में सूचित करने की कृपा करें | 😊😊